लेखिका - कोमलप्रीत कौर
नमस्ते दोस्तो, आपने मेरी कहानी `मेरा प्यारा देवर` पढ़ी और पसंद भी की, जिसके लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ।
अब मैं आपके सामने अपनी एक और चुदाई का किस्सा पेश कर रही हूँ, यह बात तब की है जब हम अपने घर की मरम्मत करवा रहे थे, जिसके लिए बहुत सारे मजदूर लगे थे। उनमें से एक मजदूर अपने गधे से समान ढोने का काम करता था,, और वो रात को भी हमारे घर के पीछे बनी शेड के पास कमरे में रहता था। और शेड में अपना गधा बाँध रखता था,,
मैनें सुना था की गधे का लंड बहुत बड़ा होता है,, मगर कभी देखा नही था,, दिन में जब गधा समान ढोने का काम कर रहा होता तो उसके उपर झोले जैसा लटकाया होता,, जिस से उसका लंड नही दिख पाता,,, मगर मैं कई बार सोचती की गधे का लंड पता नही कितना बड़ा होगा,, वैसे तो मैनें इंटरनेट पर तस्वीरों में देखा था,, मगर फिर भी अब गधे को सामने देखकर उसका लंड भी सामने से देखने का मन होने लगा,,,
एक रात मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं अपने कमरे से बाहर आ गई। मैनें देखा रात के 12 बॅज चुके थे,, सास ससुर का कमरा भी बंद था और अंदर से खराटो की आवाज़ आ रही थी,,
थोड़ी देर टहलने
के बाद मेरे मॅन में ख़याल आया की क्यों ना आज उस गधे का लंड देखा जाए,, और आखों से क्या देखना हाथ में पकड़ कर अच्छे से देखूँगी,,, मैं उस शेड की तरफ आ गई जिस तरफ वो गधा बँधा हुया था |
मजदूर के कमरे की लाइट बंद थी,, मैनें सोचा दिन भर काम करने के बाद थक कर सो रहा होगा,, मैं उस गधे की तरफ चली गयी, शेड में हल्की सी रौशनी बाहर से आ रही थी,,
मैनें देखा गधा आराम से खड़ा था,, मैनें पहले गधे की पीठ को सहलाया,, वो आराम से खड़ा रहा,, फिर मैनें अपना हाथ उसके लंड वाली जगह पर लगाया,, उसके लंड का हिस्सा सखत था मगर उसका लंड उसकी गुफा के अंदर ही था,,
मैं उस पर हाथ फिराने लगी, ता जो गधा गरम होकर अपना लंड बाहर निकाल दे,, धीरे धीरे मुझे महसूस होने लगा की उसका लंड वाला हिस्सा अकडने लगा है और उसके लंड की गुफा भी फूलने लगी है,,
मैं अपने दोनो हाथों से उसका लंड हिलाने लगी,, कुछ ही पलों में गधे का बड़ा लंड उसकी गुफा से बाहर निकल आया,, क्या लंड था यार,, एक दम बड़ा और उसका सुपाड़ा तो बहुत ही चौड़ा और मोटा था,, कम से कम मेरी बाजू जितना लंबा होगा,,
मैं अपने दोनों हाथों से उसका लंड पकड़े हुए थी,, की तभी अचानक किसी ने मेरे ऊपर टार्च की लाइट मारी… अचानक आई इस लाइट से मेरा बदन कांप उठा…
मैनें झट से गधे का लंड छोड़ दिया और खड़ी हो गयी,,,, मेरे माथे से पसीना छूटने लगा,, लाइट मेरी ओर बढ़ने लगी,,, मैं सोच रही थी कि यह जरूर मेरे ससुर या सास होगी… या पता नहीं कौन…
लाइट मेरे पास पहुँच चुकी थी और फिर बंद हो गई। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था…
अचानक किसी ने मेरे बालों को पकड़ लिया… और मेरी हल्की सी चीख निकल गई..
फिर किसी ने मेरे होंठों पर होंठ रख दिए और बेतहाशा चूसने लगा…
मैं उसके बदन को अपने हाथ से दूर हटा रही थी और पहचानने की कोशिश कर रही थी कि यह कौन है…
मैं किसी मर्द की मजबूत बाँहों में कसती जा रही थी …
यह मेरा ससुर नहीं था…
फिर
कौन है… मैं सोच सोच कर पागल हो रही थी… अब तक उसका हाथ मेरे मम्मों तक
पहुँच चुका था… वो एक हाथ से ही मेरे मम्मो को मसलने लगा,, मैं चिला भी नही
सकती थी,,
मैं अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी कि अचानक मेरा हाथ उसकी टार्च पर लगा, मैंने जोर से उसके हाथ से टार्च खींची और उसके चेहरे की तरफ करके आन कर दी… उफ़ यह… यह मजदूर… यह कहाँ से आ गया…
ओह्ह्ह… यह मेरे मम्मे ऐसे मसल रहा है जैसे मैं इसकी बीवी हूँ…
मैंने उसे धक्का मारा और दबी आवाज़ में कहा - ,, छोड़ो मुझे… क्या कर रहे हो… तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे हाथ लगाने की ?
मगर मेरे धक्के का जैसे उस पर कोई असर नहीं हुआ, उसकी मजबूत बाँहों से निकल पाना मेरे लिए मुश्किल था।
उसने
मेरे हाथ से टार्च छीन ली, और बंद करता हुया बोला- अरे रानी… तू इतनी रात
को इधर क्या कर रही है ? मेरे गधे के लंड से खेल रही थी,, अगर तुझ में
हिम्मत है तो बुला अपना सास ससुर को,, और फिर मैं उनको बताता हूँ की तू
क्या कर रही थी मेरे गधे के साथ,,,
मेरी जुबान काँपने लगी - ,,,क क क्क्या,,क्या, ,, छोड़ो मुझे, जाने दो मुझे,,
वो बोला - ठीक है,, जाने दूँगा,,, मगर तुझे लंड देखने का शौक है ना,,,, आ,, मैं दिखाता हूँ तुम को लंड,, ऐसा बोलते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और अपने कमरे की ओर चल दिया…
वो मुझे अपने कमरे में ले गया और मुझे उठाये हुए ही दरवाजे की कुण्डी लगा दी… फिर मुझे चारपाई पर फेंक दिया… और खुद भी मेरे ऊपर ही गिर गया…
मुझे
कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि मैं क्या करूं… मैं चुपचाप उसके नीचे लेटी रही…
वो अपने लण्ड का दबाव मेरी चूत पर डाल रहा था और मेरे बदन को चाट रहा था और फिर वो बोला- तो बता रानी.. देखेगी मेरा लंड,,,,,?
मैं कुछ नहीं बोली… बस लेटी रही… मुझे पता था कि आज मेरी चूत में यह अपना लौड़ा घुसा कर ही छोड़ेगा…
वो मेरे बदन को चूमने लगा… अब तक मेरा दिल जो जोर जोर से धड़क रहा था, शांत हो रहा था और डर भी कम हो गया था.. यही नहीं, उसकी हरकतों से मेरा ध्यान भी उसकी तरफ जा रहा था…
उसके
लण्ड का अपनी चिकनी चूत पर दबाव, मेरे मस्त मोटे चूचों को दबा रहा उसका
हाथ, मेरी पतली कमर को जकड़ कर अपनी ओर खींच रहा उसका दूसरा हाथ और उसकी
जुबान जो मेरे गुलाब की पंखड़ियों जैसे होंठों का रसपान कर रही थी…यह सब
मुझको बहका रहा था… अब तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत भी उसका साथ दे
रही थी…
बदन गर्म हो रहा था…
उसका लण्ड मुझे कुछ ज्यादा ही तगड़ा महसूस हो रहा था… पता नहीं क्यों जैसे उसका लण्ड ना होकर कुछ और मोटी और लम्बी चीज़ हो…
मेरी
गर्मी को वो भी समझ चुका था… वो बोला- जानेमन, प्यार का मजा तुम्हें भी
चाहिए और मुझे भी, फिर क्यों ना दिल भर के मजा लिए जाये.. ऐसे घुट घुट कर
प्यार करने से क्या मजा आएगा।
मैं भी अब अपने आप को रोक नहीं सकती थी…
मैंने अपनी बांहें उसके गले में डाल दी… मेरी तरफ से ग्रीन सिग्नल देख कर जैसे वो पागल हो कर मुझे चूमने चाटने लगा…
मैं भी बहुत दिनों से प्यासी थी… मुझे भी ऐसे ही प्यार की जरूरत थी जो मुझे मदहोश कर डाले और मेरी चूत की प्यास बुझा दे..
मैं
भी उसका साथ दे रही थी… मैंने उसकी टी-शर्ट उतार दी… नीचे उसने लुंगी और
कच्छा पहना हुआ था… उसकी लुंगी भी मैंने खींच कर निकाल दी।
अब उसका कच्छे में से बड़ा सा लण्ड मेरी जांघों में घुसने की कोशिश कर रहा था…
उसने भी मेरा कुरता उतार दिया और मेरी सलवार भी उतार दी…
अब में ब्रा और पैंटी में थी और वो कच्छे में..
मेरी
ब्रा के ऊपर से ही वो मेरे मम्मों को मसलने लगा और फिर ब्रा को ऊपर कर
दिया। अब मेरे मोटे मोटे स्तन उसके मुँह के सामने तने हुए हिल रहे थे..
उसने मेरे एक मम्मे को मुँह में ले लिया और दूसरे को हाथ से मसलने लगा। फिर बारी बारी दोनों को चूसते हुए, मसलते हुए धीरे धीरे मेरे पेट को चूमता हुआ मेरी चूत तक पहुँच गया।
वो
पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को चूम रहा था… मैंने खुद ही अपने हाथों से
अपनी पैंटी को नीचे कर दिया और अपनी चूत को उठा कर उसके मुँह के साथ जोड़
दिया…
उसने भी अपनी जुबान निकाली और चूत के चारों तरफ घुमाते हुए चूत में घुसा दी…
अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह !
मैंने भी अपनी कमर उठा कर उसका साथ दिया…
काफी देर तक मेरी चूत के होंठों और उस मजदूर के होंठों मैं प्यार का जंग होता रहा…
अब मेरी चूत अपनी लावा छोड़ चुकी थी और उसकी जुबान मेरी चूत को चाट चाट कर बेहाल किये जा रही थी…
अब मैं उसके लण्ड का रसपान करने के लिए उठी… हम दोनों खड़े हो गये.. उसने फिर से मेरे बदन को अपनी बांहों में ले लिया… मैं भी उसकी बांहों में सिमट गई… उसका बड़ा सा लण्ड मेरी जांघों के साथ टकरा रहा था जैसे मुझे बुला रहा हो कि आओ मुझे अपने नाजुक होंठों में भर लो…
वो मजदूर अपनी टाँगें फैला कर चारपाई पर बैठ गया, मैं उसके सामने अपने घुटनों के बल जमीन पर बैठ गई.. उसके कच्छे का बहुत बड़ा टैंट बना हुआ था… जो मेरी उम्मीद से काफी बड़ा था…
मैंने कच्छे के ऊपर से ही उसके लण्ड पर हाथ रखा…
ओह्ह्ह… मैं तो मर जाऊँगी… यह लण्ड नहीं था महालण्ड था… पूरा तना हुआ और लोहे की छड़ जैसा… मगर उसको हाथ में पकड़ने का मजा कुछ नया ही था…
मैंने दोनों हाथों से लण्ड को पकड़ लिया… मेरे दोनों हाथों में भी लण्ड मुझे बड़ा लग रहा था…
मैंने मजदूर की ओर देखा, वो भी मेरी तरफ देख रहा था, बोला- क्यों जानेमन, इतना बड़ा लौड़ा पहले कभी नहीं लिया क्या?
मैंने कहा- नहीं… लेना तो दूर, मैंने तो कभी देखा भी नहीं।
वो
बोला- जानेमन, इसको बाहर तो निकालो.. फिर प्यार से देखो… और अपने होंठ लगा
कर इसे मदहोश कर दो… यह तुमको प्यार करने के लिए है… तुमको तकलीफ देने के
लिए नहीं…
मुझे भी इतना बड़ा लौड़ा देखने की इच्छा हो रही थी… मैंने उसके कच्छे को उतार दिया…
कहानी जारी रहेगी।
आपकी प्यारी सेक्सी कोमल भाभी


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