कंचन - 1 चड़ती जवानी

कहानी कंचन की....

कंचन बचपन से ही सुंदर और शुशील थी. उसके हुस्न और अदाओं को जो एक बार देख लेता, बस उसी को देखता रह जाता,, 16 साल की उम्र में ही उसकी जवानी भरने लगी थी,,,  उसकी छाती के उभार भी मोटे होने लगे थे,,. बगल में और टाँगों के बीच में काफ़ी बाल निकलने लगे थे. 18 साल तक पहुँचते पहुँचते तो कंचन मानो पूरी जवान लगने लगी थी. गली और बाजार में जवान लड़कों के बीच उसी की बातें होती,,,

ब्रा की ज़रूरत तो उसे पहले से ही पड़ गयी थी. 18 साल में ही साइज़ 34 हो गया था और टाँगों के बीच के बाल भी घने और लंबे हो गये थे. हालाँकि कमर काफ़ी पतली थी लेकिन चूतड़
बहुत भारी और चौड़े हो गये थे. कंचन को अहसास होता जा रहा था कि लड़कों को उसकी दो चीज़ें बहुत आकर्षित करती हैं – उसके पीछे को उठे हुए गोल गोल चूतड़ (नितंब) और आगे को उभरी हुई उसकी छातियाँ,.

स्कूल में कंचन की बहुत सी सहेलियों का चक्कर लड़कों के साथ चल रहा था, लेकिन कंचन अभी तक इस चक्कर में नहीं पड़ी थी. हलाकि कंचन को दीवानों की कमी नहीं थी,, स्कूल के सारे लड़के उसे पटाने के चक्कर में थे,, और उसे पटाने की कोशिशें भी कर चुके थे,,, मगर  कंचन जितनी खूबसूरत थी, उतना ही उसे लड़कों को तड़पाने में मज़ा आता था.

स्कूल में सिर्फ़ घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट ही पहनी जाती थी. क्लास में बैठ कर कंचन अक्सर ही अपनी स्कर्ट जांघों तक चढ़ा लेती,, लड़कों को अपनी गोरी गोरी सुडोल मांसल टाँगों के दर्शन करवाने में उसे कोई झिझक महसूस नहीं होती,,, बल्कि कई बार तो वो अनजान बनने का नाटक करते हुए अपनी स्कर्ट अपनी झांघो तक उठा लेती,, उस वक़्त तो लड़कों की जान तक बन आती,,,  बहुत सारे लड़के जान बूझ कर अपना पेन या पेन्सिल नीचे गिरा कर, उठाने के बहाने उसकी टाँगों के बीच में झाँक कर उसकी पैंटी की झलक पाने की कोशिश भी करते.

जैसे जैसे कंचन जवान हो रही थी उसका जौबन और भी निखरता जा रहा था. अब तो अपनी जवानी को कपड़ों में समेटना भी कंचन के लिए मुश्किल होता जा रहा था. उसके चूतड़ों को संभाल पाना अब उसकी पैंटी के बस में नहीं रहा था,,, और तो और उसकी झांटों के बाल इतने घने और लंबे हो गये थे कि दोनों तरफ से पैंटी के बाहर निकल आते. ऐसी उल्हड़ जवानी किसी पर भी कहर बरसा सकती थी. 

कंचन का छोटा भाई 'विकी' भी जवान हो रहा था, वो कंचन से सिर्फ दो साल ही छोटा था,, विकी भी उसी स्कूल में पड़ता था जिस स्कूल में कंचन पड़ती थी,, यही कारन था की विकी के बहुत सारे दोस्त बन चुके थे,, जो अक्सर ही कंचन के भरे हुए जिस्म को पाने की चाहत में विकी के साथ उसके घर तक आते जाते थे, भले ही वो विकी के सामने तो कुछ न कर पाते,, मगर अपने घर में जाते ही कंचन को याद करके अपने लंड को हाथ में पकड़ कर हिलने लग जाते..

कंचन की एक सहेली थी नीलम, जिसका अपने ही चाचा के लड़के, सुधीर के साथ चक्कर चल रहा था. वो अक्सर कंचन को अपनी चुदाई की रसीली कहानियाँ सुनाया करती थी. उसकी चुदाई की कहानियाँ सुन कर कंचन के तन बदन में भी आग लग जाती और कंचन के मन में लंड को देखने की इच्छा होती,, कंचन ने बच्चों की छोटी छोटी नूनियाँ तो बहुत देखी थी,, मगर आज तक उसने किसी मर्द का असली लौड़ा नहीं देखा था,,
नीलम के मुँह से सुधीर के लंड का वर्णन सुन कर कंचन की चूत गीली हो जाती. सुधीर नीलम को हफ्ते में तीन-चार बार चोद्ता था. एक बार कंचन भी सुधीर और नीलम के साथ स्कूल से भाग कर पिक्चर देखने चली गयी. पिक्चर शुरू हुए कुछ ही देर हुई थी की नीलम के मुँह से सिसकियाँ निकलनी शुरू हो गयी,, कंचन को इस बात का एहसास हो गया की नीलम और सुधीर कुछ कर रहे हैं,, मगर जब उसने नीलम की तरफ़ देखा तो वो दंग रह गयी,, नीलम की स्कर्ट जांघों तक उठी हुई थी और सुधीर का हाथ नीलम की टाँगों के बीच में था. सुधीर की पैंट के बटन खुले हुए थे और नीलम सुधीर के लंड को सहला रही थी. अंधेरे में सुधीर के लंड देख पाना तो मुश्किल था,, मगर जिस तरह नीलम उस पर हाथ फेर रही थी, उससे लगता था की काफ़ी बड़ा होगा.

सुधीर का हाथ नीलम की टाँगों के बीच में क्या कर रहा होगा ये सोच सोच कर कंचन की चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी और पैंटी को भी गीला कर रही थी. इंटर्वल में सब लोग बाहर कोल्ड ड्रिंक पीने गये. नीलम का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था. सुधीर की पैंट में भी लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. सुधीर ने कंचन को अपने लंड के उभार की ओर देखते हुए पकड़ लिया. और फिर कंचन की नज़रें उसकी नज़रें से मिली और कंचन मारे शर्म के लाल हो गयी. सुधीर मुस्कुरा दिया. किसी तरह इंटर्वल ख़तम हुआ और कंचन ने चैन की साँस ली. पिक्चर शुरू होते ही नीलम का हाथ फिर से सुधीर के लंड पे पहुँच गया. लेकिन सुधीर ने अपना हाथ नीलम के कंधों पर रख लिया. नीलम के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुन कर कंचन समझ गयी की अब वो नीलम की चूचियाँ दबा रहा था. फिर नीलम ने अपना मुँह सुधीर के लंड पर झुका लिया,,, कंचन देखती ही रह गयी,, कंचन समझ गयी थी की अब सुधीर का लंड नीलम के मुँह में था,,

हाये राम,,, कंचन ने तो यह बातें अब तक सुनी ही नहीं थी की लंड को मुंह में लेकर उसे चूसा भी जाता है,, वो तो सिर्फ यह जानती थी की लंड को चूत में घुसाया जाता है,, हलकी सी रौशनी में कंचन नीलम को अपना सर ऊपर नीचे हिलाते हुए देख रही थी, मगर उसे यह एहसास ही नही रहा था की सुधीर भी उसको देख रहा है, मगर जब उसकी नजरें सुधीर पर पड़ी तो वो उसे देखकर शर्मा गई

सुधीर ने धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और कंचन के हाथ पर रख दिया,, कंचन की सांसें तो उन दोनों को देखकर ही तेज हो चुकी थी,, सुधीर ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कंचन की नरम नरम गाल पर अपना हाथ फिरा दिया,, और उसके होंठों को भी अपनी ऊँगली से रगड़ने लगा,, कंचन के लिए यह पहला मौका था की कोई लड़का उसके होंठों को मसल रहा था,, उसे बहुत ही मजा आने लगा. उधर नीलम इस सब से बेखबर सुधीर के लंड को पूरी शिदत से चूस रही थी,,

सुधीर ने कंचन को बाजु से पकड़ते हुए अपनी ओर खींचा और फिर उसने कंचन के उभरे हुए बूब्स को अपने हाथ में ले लिया,,, कंचन के गोल गोल और मोटे मोटे चुचों को दबाते हुए सुधीर नीलम के मुंह में अपना लंड धक्के लगा लगा कर ठूसने लगा,,, सुधीर के हाथ में आज वो माल लगा था जिस की वो कल्पना भी नहीं कर सकता था,, कंचन को भी सुधीर से अपने चुचे दबवाने में इतना मजा आ रहा था की वो अपने एक हाथ से अपनी चूत को सहलाने लगी,,

मगर नीलम के मुंह में जोर जोर से धक्के लगाने के कारण सुधीर का वीर्य नीलम के मुंह में ही निकल गया,,, और सुधीर का लंड ढीला पड़ने लगा,, नीलम ने भी उसका सारा माल चाट लिया और फिर उसके लंड के ऊपर से अपना मुंह उठा लिया,,

सुधीर ने झट से अपना हाथ पीछे खींच लिया,, अब तो कंचन का भी बुरा हाल हो चुका था, उसकी चूत फड़फड़ाने लगी थी और उसकी सांसे भी तेज हो चुकी थी,, उसके चुचों के दोनों निप्पल सख्त हो चुके थे,,, मगर फिर भी उसने नीलम को अपनी इस हालत के बारे में पता नहीं चलने दिया,,

इस घटना के बाद सुधीर हमेशा कंचन को अकेले में मिलने की आड़ में रहता,, मगर स्कूल में आते-जाते विकी कंचन के साथ होता, और स्कूल में भी उसे कोई मौका ना मिल पाता,,, एक बार सुधीर ने लाइब्रेरी में कंचन को अकेला देख कर उसे पकड़ लिया और उसके होंठों को मुंह में लेकर चूसने लगा,, कंचन इस सब से डर रही थी मगर सुधीर यह मौका कहा छोड़ने वाला था,, उसने जल्दबाजी में कंचन के चुचे दबाये और उसके मोटे चूतड़ों को भी अपने हाथों से मसल कर रख दिया,, मगर जल्द ही किसी के आने के आहट से वो दोनों अलग हो गए,,

कंचन के चूतड़ तो पहले भी कई बार भीड़ भरे इलाकों में लड़कों ने कई बार दबाये थे,, मगर जिस तरह से सुधीर ने उसके चुड़तों को मसला था और उसके चुचों को दबाते हुए उसके होंठों का रसपान किया था,, उसका मजा कुछ अलग ही था,, और तो और आज कंचन को सुधीर के तने हुए लंड का एहसास भी अपनी झांघों पर हुआ था,, जो उसे मदमस्त कर रहा था,,, अब उसके मन में लड़कों का लंड देखने की इच्छा पहले से भी ज़्यादा भड़क उठी थी

कंचन के घर के पीछे खुला मैदान था. यहाँ पर लोग अक्सर पेशाब करने खड़े हो जाया करते थे. कंचन हर रोज छत पे टहलने के बहाने पेशाब कर रहे लोगों के लंड देखने की कोशिश करती,, मगर जब सामने वाला मर्द उसकी तरफ देखता तो वो घबरा कर पीछे हट जाती,, 

मगर एक दिन कंचन की मनो कामना पूरी हो ही गयी, मैदान में कंचन के घर के बिल्कुल नज़दीक ही एक लंबा तगड़ा साधु खड़ा इधर उधर देख रहा था. अचानक साधु ने अपना तहमद पेशाब करने के लिए ऊपर उठाया तो कंचन देखती ही रह गयी. साधु की टाँगों के बीच में मोटा, काला और बहुत ही लंबा लंड झूल रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसका लंड उसके घुटनों से तीन या चार इंच ही उँचा होगा. साधु ने दोनो हाथों से अपना लंड पकड़ के पेशाब किया. साधु का लंड देख कर कंचन को गधे के लंड की याद आ गयी. उसने कई बार मैदान में घूमते गधों के लटकते हुए मोटे लंबे लंड भी देखे थे. 

अगले दिन ही स्कूल में कंचन ने नीलम को भी उस साधु के बड़े लंड के बारे में बताया,, नीलम तो पहले से ही लंड की शौकीन थी,, इतने बड़े लंड के बारे में सुनकर नीलम बोली - अरे यार,,, काश ऐसा बड़ा लंड मुझे मिल जाता तो मैं उस से वहीं चुदवा लेती,, ऐसा बोलते हुए साथ ही नीलम ने मज़ाक से कंचन के एक चूतड़ को दबा दिया,, भारी और उभरे हुए चूतर को दबाने से कंचन की स्कर्ट को भी खिचाव पड़ा,, कंचन ने हंसते हुए नीलम को गुस्सा दिखाते पीछे धकेला और अपना चूतड़ छुड़वा लिया,, मगर पीछे धकेलने से कंचन की स्कर्ट नीलम के हाथ से एक पल के लिए कंचन की जांघों तक उपर उठ गयी,, उफ़फ्फ़ क्या नजारा था,, पीछे से दिखती हुई कंचन की मोटी जांघे और चूतरों पर अटकी हुई उसकी काले रंग की पैंटी का नज़ारा उनके पीछे थोड़ी दूर खड़े हुए कुछ लड़कों ने देख लिया. लड़कों पर तो जैसे बिजली ही गिर पड़ी हो,, सब के मुँह से एक साथ ही “हाए हाए” की आवाज़ें निकल पड़ी,, एक लड़के ने तो यहाँ तक बोल दिया की “क्या जांघे हैं यार,,,,” , दूसरे लड़के ने तो हद ही कर दी बोला “ हाए क्या कातिल चूतड़ हैं. आजा मेरी जान पूरा लौड़ा तेरी गांड में पेल दूं.”  अपने बारे में ऐसी अश्लील बातें खुले आम सुन कर कंचन दंग रह गयी. अब वहाँ पर खड़े रह पाना कंचन के लिए मुश्किल था,, वो दौड़ती हुई वहाँ से चली गयी और उसके पीछे ही दौड़ती हुई नीलम आ गयी,,,

“ तू कितनी अनाड़ी है कंचन. तेरे चूतड़ हैं ही इतने सैक्शी की किसी भी लड़के का मन डोल जाए.” नीलम ने हस्ते हुए कहा.

“ लेकिन वो तो कुच्छ और भी बोल रहा था.” - कंचन ने नीलम से कहा,

“तेरी गांड में लंड पेलने को बोल रहा था? मेरी भोली भाली सहेली बहुत से मर्द औरत की चूत ही नहीं गांड भी चोदते हैं. ख़ास कर तेरी जैसी लड़कियो की, जिनकी गांड इतनी सुन्दर हो. देखना तेरा पति रोज तुझे घोड़ी बना कर तेरी गांड चोदा करेगा. सच कंचन,, अगर मेरे पास लंड होता तो मैं भी तेरी गांड ज़रूर मारती.” - अब नीलम ने कंचन को चिड़ाते हुए कहा.

कंचन - “ हट नालयक ! सुधीर ने भी तेरी गांड चोदी है क्या ?” 

नीलम - “ नहीं रे,, अपनी किस्मत में इतने सेक्सी चूतड़ कहाँ.”

कंचन को पहली बार पता लगा था कि औरत की आगे और पीछे दोनो ओर से ली जाती है. तभी उसकी आँखों के सामने फिर से साधु महाराज का लंड घूम गया और वो काँप उठी. अगर वो बिजली का खंबा गांड में घुस गया तो क्या होगा! कंचन को अभी भी नीलम की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. इतने छोटे से छेद में लंड कैसे जाता होगा, कंचन सोच सोच कर प्रेशान हो रही थी,

इस दौरान सुधीर ने विकी से भी अच्छी दोस्ती कर ली थी. दोनो साथ साथ ही घूमा करते थे. एक दिन सुधीर उनके घर में आया और विकी के कमरे में बैठ कर वो दोनों बातें करने लगे, जब वो दोनों बातें कर रहे थे तो कंचन भी चोरी चोरी उनकी बातें सुनने लगी,,

मगर कंचन उनकी बातें सुन के हैरान रह गयी.

सुधीर बोल रहा था - “कहने को तो नीलम मेरी चचेरी बहन है,, मगर क्या चूत मरवाती है यार,,, उछल उछल कर लंड लेती है,,,” 

उसकी बात सुनकर विकी कहने लगा,, - “यार बड़ा ख़ुसनसीब है तू,, जो तुझको ऐसी बहन मिली है, और रोज चूत मारता है,, और एक मैं हूँ,, जिसने अभी तक चूत की शक्ल भी नही देखी..” 

सुधीर - “तो देख ले ना,,,,, . सुंदर और सैक्शी चूत तेरे घर में है,, जैसे मैनें अपनी बहन को पटा रखा है, तू भी पटा ले अपनी बहन को.. वरना मुझे एक मौका दे,, देख कैसे लाता हूँ उसको लाइन पे ”

सुधीर की ऐसी गंदी बातें सुनकर तो कंचन ने दातों के नीचे उंगलियाँ चबा ली ...

विकी - “ क्या बोल रहा है यार,, वो मेरी बहन है,, ”

सुधीर -  “अरे तो नीलम भी तो मेरी बहन है,, फिर क्या हुया,, कंचन जितनी सैक्शी और जवान है ना,, ज़रूर किसी ना किसी से तो चुदती होगी,, उसकी गांड देखी है कभी,, इतनी बड़ी गांड तभी होती है जब कोई लड़की रोज गांड मरवाए,  ” “अरे ऐसी गांड देखकर,, तेरा मन नही करता,, उसको नंगी देखने को,,  ”- सुधीर ने विकी को झंझोड़ते हुए कहा

सुधीर की ऐसी बातें सुनकर एक बार तो कंचन का मन किया की वो सुधीर को धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दे,, मगर फिर विकी जो बोला उसे सुन कर कंचन दंग रह गयी.

“यार दिल तो बहुत करता है लेकिन कभी मौका नहीं मिला ” - विकी ने सुधीर को बताते हुए कहा.
“ कभी कभी दीदी जब लापरवाही से बैठती है तो एक झलक उसकी पॅंटी की मिल जाती है. जब कभी वो नहा कर निकलती है तो मैं झट से बाथरूम में घुस जाता हूँ और उसकी उतारी हुई पैंटी को सूंघ लेता हूँ और अपने लंड पे रगड़ लेता हूँ.”
“ वाह प्यारे! तू तो छुपा रुस्तम निकला. कैसी सुगंध है तेरी दीदी की चूत की?” - सुधीर ने विकी को थपथपाते हुए कहा.
विकी - “बहुत ही मादक है यार. दीदी की चूत के बाल भी बहुत लंबे हैं. अक्सर पैंटी पर रह जाते है. कम से कम तीन इंच लंबी झाँटें होंगी.” 
सुधीर - “ हाए,, यार मेरा लंड तो अभी से खड़ा हो रहा है. एक दिन अपनी दीदी की पैंटी की महक हमें भी सूँघा दे. तेरा कभी अपनी दीदी को चोदने का मन नहीं करता?”
“ करता तो बहुत है लेकिन जो चीज़ मिल नहीं सकती उसके पीछे क्या पड़ना? दीदी के नाम की मूठ मार लेता हूँ.” - विकी ने उदासी के आलम में कहा
विकी और सुधीर की बातें सुन कर कंचन का पसीना छूट गया. कंचन को विकी से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो उसका छोटा भाई था.
मगर उस दिन के बाद कंचन ने अपनी पैंटी बाथरूम में कभी नहीं छोड़ी. उसे डर था की विकी उसकी पैंटी सुधीर को ना दे दे.
कुछ दिन बीत गये,,, फिर कंचन कभी कभी सोच में पड़ जाती,, की मेरा सगा भाई भी मुझे चोदना चाहता है, अगर विकी मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला है,, तो मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती,,,पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन उसे ज़रूर करवा दूँगी,, ऐसी सोच के चलते ही कंचन ने एक दिन विकी को अपनी पैंटी और अपनी जाँघो के दर्शन करवाने के प्लान बना ही लिया..
स्कूल ड्रेस में अपनी पैंटी की झलक देना कंचन के लिए बड़ा आसान था. जब उसके मम्मी पापा आस पास ना होते तो वो अक्सर सोफा पर बैठ कर टीवी देखते वक़्त अपनी टाँगों को इस प्रकार फैला लेती की विकी को उसकी पैंटी के दर्शन हो जाते. एक दिन कंचन अपने रूम में ही स्कूल ड्रेस में ही लेटी हुई बुक पढ़ रही थी की विकी के कदमों की आहट सुनाई दी. तो कंचन ने झट से अपनी टाँगें मोड़ कर ऊपर कर ली ओर चेहरे के सामने बुक करके पढ़ने का नाटक करती रही. कंचन ने अपनी टाँगें भी थोड़ी सी चौड़ी कर रखी थी,, उसकी गोरी गोरी मांसल टाँगें पूरी तरह नंगी थी. स्कर्ट कमर तक ऊपर चढ़ गयी थी.
आज उसने ज़्यादा ही छोटी पैंटी पहन रखी थी, जो बरी मुश्किल से उसकी चूत को ढके हुए थी. उसकी लंबी घनी झांटें पैंटी के दोनों ओर से बाहर निकली हुई थी. इतने में विकी आ गया और सामने का नज़ारा देख कर देखता ही रह गया. उसकी आँखें कंचन की टाँगों के बीच में जमी हुई थी. इस मुद्रा की प्रॅक्टीस कंचन शीशे के सामने पहले ही कर चुकी थी. इस लिए उसे भली भाँती पता था कि इस वक़्त उसकी चूत के घने बाल पैंटी के दोनो ओर से झाँक रहे थे. पैंटी बड़ी मुश्किल से उसकी फूली हुई चूत के उभार को ढके हुए थी. आज कंचन ने अपनी भाई को जी भर के अपनी पैंटी के दर्शन कराए.
फिर अचानक से कंचन ने बुक नीचे करते हुए पूछा “ विकी क्या कर रहा है ? कुच्छ चाहिए ?” विकी एकदम से हड़बड़ा गया. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था. “ कुच्छ नहीं दीदी. अपनी बुक ढूंड रहा था. - विकी ने अपनी पैंट के उभार को छुपाते हुए कहा.
मगर उसकी पैंट के उभार को कंचन पहले ही देख चुकी थी,, वो समझ गयी की विकी का लंड खड़ा हो गया है और विकी की पैंट का उभार देख कर उसे लगने लगा कि उसका लंड काफ़ी बड़ा था.
आज कंचन बहुत खुश थी,,, क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा पुण्या का काम कर लिया हो,,, अब तो वो हर रोज किसी ना किसी बहाने अपनी पैंटी और पैंटी से बाहर आते चूत के बालों के दर्शन अपने भाई को करवा दिया करती.. विकी भी अब हर वक़्त इसी मौके की तलाश में रहने लगा था,, बल्कि अब तो उसकी खावहिश और बढ़ गयी थी,, अब तो वो ऐसा मौका डुंड रहा था की किसी ना किसी तरह वो कंचन की चूत को या फिर गांड को नंगी देख सके,
कंचन का भी कुछ ऐसा ही हाल था,, जब से उसने विकी की पैंट का उभार देखा था तब से उसके दिमाग़ में एक ही बात घूमने लगी थी कि किस तरह विकी का लंड देखा जाए.
उसे पता था कि विकी रात को लूँगी पहन कर सोता है. उसके दिमाग़ में एक प्लान आया. कंचन रोज़ सुबह जल्दी उठ कर विकी के कमरे में इस आस से जाने लगी कि किसी दिन उसकी लूँगी खुली हुई मिल जाए या कमर तक उठी हुई मिल जाए और वो उसके लंड के दर्शन कर सके,. कई दिन तक किस्मत ने साथ नहीं दिया. अक्सर उसकी लूँगी जांघों तक उठी हुई होती लेकिन लंड फिर भी नज़र नहीं आता. लेकिन कंचन ने हार नहीं मानी. आख़िर एक दिन वो कामयाब हो ही गयी. एक दिन जब कंचन विकी के कमरे में घुसी तो देखा विकी सीधा लेटा हुआ है और उसकी लूँगी सामने से खुली हुई थी. सामने का नज़ारा देख कर तो कंचन बेहोश होते होते बची. उसने तो सपने में भी ऐसे नज़ारे की कल्पना नहीं की थी. इतना लंबा! इतना मोटा! इतना काला लंड! बाप रे बाप! कंचन ने अपने आप को नोचा, की कहीं वो सपना तो नहीं देख रही. क्या भयंकर लग रहा था विकी का लंड. इसने तो साधु महाराज के लंड को भी मात दे दी.
कंचन को तो जैसे साँप सूंघ गया था. फिर अचानक विकी ने हरकत की, और कंचन जल्दी से भाग गयी. उस दिन के बाद से कंचन की नींद हराम हो गयी थी. वो रोज़ सुबह पागलों की तरह उठ के विकी के लंड के दर्शन करने उसके कमरे में जाती,, लेकिन बहुत बार तो निराशा ही हाथ लगती. कंचन ने पक्का सोच लिया था कि एक दिन ये लंड मेरी चूत में ज़रूर जाएगा.
आगे जारी....