दादा पोता ने पंजाबन भाबी को मिलकर चोदा



लेखिका - कोमल प्रीत कौर

मैं विकास के सामने घोड़ी बनी हुई थी और विकास का लंड मेरी चूत में था. वो धक्के के ऊपर धक्के लगा कर मुझे चोद रहा था. मैंने अपने दोनों हाथ पीछे गांड पर रखे हुए थे और अपने कूल्हे खोल दिए थे ताकि उसका मोटा लंड मेरी चूत के अन्दर बाहर आसानी से हो सके. विकास भी मेरी पतली कमर को पकड़ कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोद रहा था. उसकी जांघें मेरे चूतड़ों से टकराने से कमरे में थप थप की आवाज़ें गूँज रही थीं. मेरे मुँह से भी सिसकारियां निकल रही थीं और मैं आह्ह्ह … आअह्ह्ह … करती हुई अपनी गांड को विकास के लंड के साथ आगे पीछे कर रही थी. विकास का एकदम कड़क और तना हुआ लंड मुझे ऐसे महसूस हो रहा था, जैसे मेरी चुत में कोई गर्म लोहे की रॉड अन्दर बाहर हो रही हो.

उसी वक्त मुझे एक जोरदार झटका लगा जब मैंने खिड़की की तरफ देखा. मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी, मैंने विकास का लंड अपनी चुत से एक झटके से बाहर निकालते हुए खिड़की की तरफ इशारा किया. विकास भी खिड़की की तरफ देखकर भौंचक्का रह गया और उसका लंड भी कुछ ही सेकेंड में ढीला हो गया. खिड़की के बाहर 60-65 साल का एक बूढ़ा खड़ा था और वो आँखें लाल किए हुए हमारी तरफ ही देख रहा था. डर के मारे मेरे हाथ पैर काँपने लगे और मैं जल्दबाज़ी में अपने कपड़ों को तलाशने लगी.

तभी विकास के मुँह से डगमगाते हुए शब्द निकले- दा…दा… दादा जी… आआआप…!

उफ्फ़ सॉरी सॉरी दोस्तो, मैं आपको अपने बारे में तो बताना भूल ही गयी. मेरा नाम कोमलप्रीत कौर है और मैं पंजाब के जालंधर शहर के पास एक गांव में रहती हूँ. मेरे पति आर्मी में हैं और मैं अपने सास और ससुर के साथ रहती हूँ.


मुझे नये नये लड़कों से अपनी चुदाई कराने में बहुत मज़ा आता है. मेरे पति की नौकरी की वजह से मुझे कई कई महीने बिना चुदे ही निकालने पड़ते. मगर मेरी जवानी को पाने के लिए बहुत सारे लड़के मुझे पटाने को लगे रहते और मैं भी पति की बिना कितनी देर रह सकती थी. आख़िर मैं भी तो एक औरत हूँ.. बस मौका देखते ही मैं भी उनको लाइन देने लगी और फिर शुरू हुआ मेरी ताबड़तोड़ चुदाई का सिलसिला.

मैं बेख़ौफ़ चुदने लगी. कभी किसी लड़के के साथ और कभी किसी बूढ़े के साथ … जो भी मुझे पसंद आता और जहां भी मुझे मौका मिलता, मैं किसी के भी लंड से अपनी प्यासी चुत की प्यास बुझा लेती.

ऐसे ही मुझे एक बार बस में एक लड़का मिला. उसका नाम विकास था. बस में भीड़ का फ़ायदा उठाकर वो मेरे बदन पर हाथ फेरने में भी कामयाब हो गया और मुझे पटाने में भी सफल हो गया. मैं तो पहले से ही बड़े और मोटे लंड की दीवानी ठहरी, उसका इशारा पाकर अपनी मुस्कराहट को रोक नहीं पाई और वो भी बस से उतरते ही मेरे पीछे पीछे चल दिया. कुछ आगे जाकर वो मुझे कॉफी के लिए बोलने लगा. उसके हाथ ने तो मुझे बस में ही गर्म कर दिया था इसलिए मैं भी उसकी कॉफी पीने को तैयार हो गयी.

वो मुझे एक रेस्टोरेंट में ले गया. कॉफी पीते पीते उसके हाथ मेरी जांघ और फिर मेरी चुत पर ही चलते रहे. चुदासी होने के कारण मेरी टांगें चौड़ी होने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा. विकास भी मेरी चुत की प्यास को जान गया और मुझसे बोला- आज मेरे घर में कोई नहीं है, क्या मेरे साथ जाना चाहोगी?

ऐसे बढ़िया मौके को भला मैं कैसे छोड़ सकती थी.. मैं उसके साथ जाने को तैयार हो गयी. फिर वो मुझे एक पार्किंग में ले गया और उधर से अपनी बाइक उठा कर मुझे जालंधर के ही एक मुहल्ले में ले गया.

एक शानदार मोहल्ले में उसका एक शानदार घर था. उसने घर का ताला खोला और अन्दर जाते ही उसने मुझे अपनी बांहों में भर लिया. मैं भी बिना वक़्त गंवाए अपनी चुत की प्यास बुझवाना चाहती थी. फिर विकास मुझे अपनी बांहों में उठाकर अपने बेडरूम में ले गया और एक एक करके मेरे कपड़े उतारने लगा. मैं भी उसका साथ देते हुए कुछ ही पलों में बिल्कुल नंगी हो गयी. फिर विकास भी कुछ ही पलों में नंगा हो गया.

हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर बेड पर करवटें बदलते हुए एक दूसरे के ऊपर नीचे होने लगे. विकास का तना हुआ लंड मेरी गीली हो रही चुत में घुसने को बेकरार था. मैंने भी उसकी बेकरारी को देखते हुए उसका लंड पकड़ कर अपनी चुत में डाल लिया. विकास भी अपने लंड को मेरी चुत में पेलने लगा और फिर मेरी चुत विकास के मोटे लंड से चुदने लगी.


मेरे मुँह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… आहह …’ की आवाज़ें निकलने लगीं और मैं बिना किसी डर के ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी. विकास का लंड मुझे आनंदित करने के लिए काफ़ी था और उसकी जवानी का जोश भी मेरी चुत की आग को ठंडा करने के लिए बहुत था. वो मुझे चूमता चाटता हुया ज़ोर ज़ोर से अपनी कमर हिला कर मेरी चूत की चुदाई करने लगा,,

बीस मिनट की चुदाई के बाद विकास मेरी चुत में ही झड़ गया और मैं भी झड़ गयी. मेरी चुत से विकास के लंड का वीर्य निकल रहा था.. मगर फिर भी मेरी चुत में अभी लंड की और प्यास बाकी थी. मैं विकास के दूसरे राउंड की प्रतीक्षा करने लगी. विकास का मन भी अभी कहां भरा था.. उसने मुझे घोड़ी बनने को कहा.

मुझे भी अलग अलग तरीके से चुदवाने में मज़ा आता है,, इसलिए मैंने झट से अपनी 36 इंच चौड़ी गांड को ऊपर उठा दिया. मैंने अपने सिर को तकिये के ऊपर रख दिया और अपनी कमर को भी नीचे के तरफ झुका दिया. इससे मेरे दोनों बड़े बड़े चूतड़ दोनों तरफ फैल गए और मेरी चूत और गांड का छेद विकास के सामने आ गया. विकास ने मेरी गांड को अपने हाथों में पकड़ कर प्यार से सहलाने लगा,,  मेरी गांड और चूत दोनों को चूमने लगा,, 

मेरी गीली चूत से निकल रहे चूतरस को वो अपनी जीभ से चाटता हुए अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर तक घुसा देता,, और मैं मज़े में अपनी चूत को चौड़ी करके उसके मुँह पर दबा देती,, पाँच मिंट तक विकास ऐसे ही मेरी चूत को चाटता रहा,,,  और फिर मेरी खुली हुई चूत के सुराख पर अपना लोहे की रॉड जैसा लंड रख दिया और फिर एक ही झटके में अपना सारा लंड  मेरी चूत में घुसेड़ दिया.

मोटा लंड अन्दर जाते ही मेरे मुँह से सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं और मैं आहें भरती हुई विकास के लंड से अपनी चुदाई करवाने लगी.

मगर तभी मेरी नज़र खिड़की पर पड़ी और हमें अपनी चुदाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.

दरवाजे को लात मारते हुए दादा जी ने विकास को आवाज दी- अरे नालायक दरवाजा खोल … वरना तेरी टांगें तोड़ कर रख दूँगा.


विकास भी बुरी तरह कांप रहा था और वो अपने कपड़े तलाश करने लगा. मगर इतनी देर तक दादा जी दरवाजे पर कम से कम दस बार लात मार चुके थे. विकास अपना अंडरवियर ही पहन पाया था और उसे दरवाजा खोलना पड़ा.

मैं भी मुश्किल से अपनी पैंटी ही पहन पाई थी और बाकी का बदन मुझे वहां पड़ी एक चादर से ही ढकना पड़ा. मैं बेड के दूसरे कोने में जाकर बैठ गयी.

विकास ने दरवाजा खोला तो दादा जी गुस्से से अन्दर आते हुए विकास पर चिल्लाए- अरे नालायक … तुझे शरम नहीं आई यह सब कुछ करते हुए.. तेरी उम्र अभी पढ़ने लिखने की है और तू यह सब कुछ कर रहा है?

विकास डर के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मगर दादा जी उस पर गुस्से से चिल्ला चिल्ला कर बहुत कुछ बोले जा रहे थे.

दादा जी ने फिर गुस्से से चिल्लाते हुए कहा- यह तो अच्छा हुआ कि तुम्हारी दादी ने मुझे गांव से तुम्हारे पास रहने के लिए भेज दिया और तुम्हारी ऐसी हरकतों का मुझे पता चल गया. अब आने दो तुम्हारे माँ-बाप को … तुम्हारी अच्छे से पिटाई करवाता हूँ.

तभी दादा जी ने मेरी तरफ देखा और फिर गुस्से से मेरी तरफ बड़े- अब तू बता … तू कौन है? और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे बच्चे के साथ यह सब करने की?

ऐसे ही चिल्लाते हुए दादा जी ने मुझे बाजू से पकड़ा और खड़ी कर दिया. मैं पेंटी में अपने सीने से लगाई हुए चादर को संभालते हुए दादा जी को सॉरी बोलने लगी.

मगर दादा जी ने मुझे बाजू से पकड़े हुए ही दूसरे हाथ से मेरी चादर को खींच कर नीचे गिरा दिया और मुझे बाहर की ओर धकेलते हुए बोले- चल अब ऐसे ही अपने घर जा … तुझे कोई कपड़ा नहीं मिलेगा.

मगर मैं दादा जी के सामने हाथ जोड़ते हुए और साथ ही अपने चुचों को छिपाने की कोशिश करती हुई बोली- दादा जी, प्लीज़ मेरे कपड़े दे दीजिए. मैं आगे से विकास से कभी नहीं मिलूंगी.

विकास भी दादा जी के सामने हाथ जोड़ने लगा और माफी माँगने लगा.

मगर दादा जी ने गुस्से से कहा- तू चल पहले बाहर का मेन दरवाजा बंद करके आ! (दादा जी ने विकास को उंगली से इशारा करते हुए कहा.)

विकास ने जल्दी से अपनी पैंट पकड़ी और बाहर की तरफ भाग गया.

दादा जी ने मेरी तरफ गुस्से से देखा और बोले - हाँ,,, तो अब तू बता,,, तुमको शरम नही आती ऐसे काम करने में,, तुम को तो ज़रूर सज़ा मिलेगी,,, और तुम्हारे घर वालों को यहाँ बुला कर उनको तुम्हारी यह हालत दिखाऊंगा,,, 

मैं फिर से दादा जी के सामने हाथ जोड़ते हुए बोली - प्लीज़ दादा जी,,, मुझे इस बार माफ़ कर दीजिए,, मैं आगे से कोई ऐसा काम नही करूँगी,,, प्लीज़ दादा जी,,, प्लीज़,,, (मैनें कुछ रोते हुए कहा)

दादा जी ने इस बार कुछ नरम होते हुए कहा - ठीक है,,, मगर पहले यह बताओ,, की तुम कौन हो और विकास को कैसे जानती हो,,

मैनें अपने आँसू पोंछते हुए दादा जी को सारी बात बता दी और कहा की मैं पहली बार ही विकास से मिली हूँ और विकास के कहने पर ही उसके घर आई हूँ,,,

दादा जी ने फिर से नरम लिहजे में मेरी आँखों में आँखें डालते हुए कहा - अछा,, पहली बार मिली हो,,,,, और पहली बार में ही उसके नीचे कपड़े उतार कर लेट गयी,,,

मैनें अपनी आँखें नीची करते हुए दादा जी से कहा - हाँ,, जी,, मगर दुबारा से ऐसा कुछ नही करूँगी,,, 

दादा जी ने मेरी बाजू को छोड़ कर मेरे बालों को पकड़ लिया और मेरे चेहरे को उपर उठाते हुए बोले - अछा,, तो फिर अब तुम बताओ,, की तुमको माफ़ करने के लिए मैं तुमको कौन सी सज़ा दूं,,,

दादा जी के बाल पकड़ने से मेरे मुँह से आह्ह्ह्ह निकल गयी और मैनें दर्द भरे लिहजे में कहा - दादा जी,, आप जो कहोगे मैं वैसा ही करूँगी,,, मगर प्लीज़ आप इस बारे में किसी को मत बताइए,,,

दादा जी मेरे क्रीब होते हुए बोले - अछा,, मैं जो कहूँगा,,, वही करोगी,,,

मैनें कहा - हाँ दादा जी,,, आप जो कहोगे,, मैं वैसा ही करूँगी,,,,

फिर दादा जी मेरी आँखों में आँखे डाल कर मुस्कराने लगे और मेरे बाल छोड़ कर मुझे अपनी बाहों में कसने लगे,,, और साथ ही मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगे,,

मेरे होंठ दादा जी के मुँह में होने के कारण में कुछ भी नही बोल पाई,,, मगर मैं समझ गयी थी कि दादा जी मुझे कौन सी सज़ा देने वाले हैं,, अब वो मेरी चुदाई करके ही मुझे माफ़ करेंगे.

इस लिए मैं उनको बिना रोके टोके उनकी बाहों में खड़ी रही और धीरे धीरे उनकी कमर में अपनी बाहें लपेटने लगी,,,मेरी बाँहे दादा जी की कमर से लिपटते ही दादा जी समझ गये की मुझे उनकी यह वाली सज़ा मन्जूर है,,,

दादा जी मेरी गोरी और मखमली पीठ पर लटक रहे काले बालों में अपने हाथ घुमा घुमा कर मुझे अपने सीने से दबाने लगे,, और उनका लंड उनकी धोती को उपर उठाता हुया मेरी झंघों से टकराने लगा,,, 

तभी विकास भी दरवाजा बंद करके अन्दर आ गया और मुझे दादा जी की बाहों में ऐसी हालत में देख भौंचक्का रह गया.

दादा जी ने भी उसकी तरफ देखा और बोले- कर दिया दरवाजा बंद.. चल अभी दूसरे कमरे में बैठ.. तुझको बुलाता हूँ बाद में.

विकास भी बिना कुछ बोले चुपचाप कमरे से मेरी तरफ देखता हुआ बाहर चला गया.

मैं भी विकास की तरफ देख कर हल्का सा मुस्कराने लगी,,

फिर दादा जी ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया,,, और अपनी धोती और कुर्ता भी उतार फेंका,, दादा जी का लंड उनके कच्छे के अंदर से ही बहुत बड़ा दिख रहा था,, मैं बिस्तर पर लेटी दादा जी का कच्छा उतरने का इंतजार करने लगी,, फिर दादा जी मेरी दोनों टाँगों के बीच में आ गये और उन्होंने मेरी पैंटी को दोनों हाथों से पकड़ कर उतार दिया,,, मैनें भी टांगे उठा कर अपनी पैंटी उतारने में उनकी मदद की,,


मेरी गुलाबी और रस से भरी हुई चूत देखकर दादा जी ने मेरी दोनों झांघों को पकड़ कर मेरे चुतड़ों को उपर उठा दिया और अपने मुँह को मेरी चूत के उपर रख दिए,, ओह,,, क्या नज़ारा था,,,, अपने आप मेरी चूत के झटके दादा जी के मुँह पर बजने लगे,, और वो भी मेरी चूत में अपनी ज़ुबान घुसेड घुसेड कर मेरी चूत चाटने लगे,, 

काफ़ी देर तक वो ऐसे ही मेरी चूत चाटते रहे और फिर जैसे ही उन्होंनें अपना मुँह उपर उठाया तो उनकी मूँछे मेरे चूत रस से भीगी पड़ी थी,,, उन्होंनें अपने हाथ से अपनी मूँछें सॉफ की और अपना हाथ मेरे मुँह में डाल दिया, मैनें भी उनकी उंगलियों को चाट चाट कर साफ कर दिया,,

फिर दादा जी ने अपना कच्छा भी उतार फेंका और अपने पैर और घुटनों के बल बिस्तर पर बैठ गये,,, उनका लंड विकास के लंड से कहीं बड़ा था,, जो पूरा तना हुया और डंडे की तरह सीधा खड़ा था,

फिर दादा जी मुझे मेरे हाथों से पकड़ कर बिस्तर पर बिठा दिया और मुझे अपने लंड के उपर बैठने के लिए कहा,,  मैं दादा जी के मुँह की तरफ अपना मुँह करते हुए उनकी गोद में बैठ गयी, जिस से दादा जी का बड़ा और काले रंग का लंड मेरी गुलाबी चूत के होंठों को खोलता हुया मेरी चूत के अंदर घुसने लगा,, 

दादा जी ने मेरी कमर के पीछे से अपने हाथ डाल लिए और अपने तगड़े मूसल लंड पर बैठने में मेरी मदद करने लगे,,, कुछ ही पलों में दादा जी का पूरा लंड मेरी चूत में घुस गया और मैं दादा जी के गले में अपनी बाहें डाल कर उनके साथ लिपट गयी,,, उनकी बालों से भरी हुई छाती मेरे मुलायम और मोटे मम्मों (बूब्स) से घिसड़ने लगी,,,


पता नही दादा जी कितने समय के बाद चूत की चुदाई कर रहे थे, मगर उनका पूरा लंड मेरी चूत में घुसते ही दादा जी आनंदित हो कर आअह्ह्ह्ह्ह्ह आआअह्ह्ह्ह्ह करते हुए बोले -
ओह,, ओह,,,  वाह मेरी जान.. तुमने  तो एक ही बार में मेरा पूरा लंड निगल लिया,,, क्या लाजवाब चूत है तुम्हारी,,

मैनें दादा जी की तरफ देख कर मुस्कराते हुए कहा - ह्म्म्म दादा जी,,, लाजवाब चूत है ना,,,, तभी तो मैं नंगी होकर पहली बार में ही आपके पोते के नीचे लेट गयी थी,,, 

मेरी बात सुनकर दादा जी हँसते हुए बोले - ह्म्म्म,,, बहुत चालक हो तुम कोमल,,  और सुंदर बी बहुत हो,, और उस से भी ज़्यादा लाजवाब तुम्हारी चूत है,, इसी लिए तो मैं तुमको यह खास सज़ा दे रहा हूँ,,, 

मैनें भी हँसते हुए कहा - दादा जी,,, ऐसी सज़ा तो चाहे आप मुझे रोज दे देना,, मैं आपकी हर सज़ा के लिए तैयार हूँ,,,

फिर दादा जी बोले-  सच में कोमल,,, मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी अच्छी हो,,, वरना तुम्हारे साथ ऐसे गुस्से से पेश नही आता,,,

मैने दादा जी के सिर को अपने बूब्स के उपर झुकाते हुए कहा - ओह्ह्ह,, दादा जी,,जो हो गया,, उसे भूल जाइए और अब आप जैसे पेश आना चाहते हैं,,, वैसे ही मेरे साथ पेश आइए,,, मेरी तरफ से आपको खुली इजाज़त है,,,,

मेरी बात सुनकर दादा जी भी मेरे बूब्स को चूमते हुए बोले - आहह कोमल,,, सच में तुम बहुत बढ़िया माल हो,,, तुम्हारा हर एक  अंग लाजवाब है,,, और फिर साथ ही दादा जी मेरे बूब्स को अपने मुँह से दबाने लगे,, और बूब्स की निपल को मुँह में डाल कर चूसने लगे,,,

मैं भी दादा जी के लंड पर उछल उछल कर उनका लंड अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी,, दादा जी नीचे से ही अपने लंड के झटके मार मार कर मेरी चुदाई करने लगे,, दादा जी कभी मेरी पतली कमर को और कभी मेरे मोटे बूब्स को अपने हाथों से मसल रहे थे, 

मैं ज़ोर ज़ोर से उनकी गोद में उठक बैठक कर रही थी और मेरे काले लंबे बाल मेरी पीठ पर उपर नीचे लहरा रहे थे,,, 


मैंने पूरी तरह से अपने आप को दादा जी की बांहों के हवाले करते हुए आंखें बंद कर लीं और फिर अपने बालों में हाथ घुमाते हुए पीछे की तरफ झुक गयी, जिससे मेरी चूत का दबाव दादा जी के लंड के ऊपर और ज़्यादा बढ़ गया.

मैं पूरी तरह से मदहोश हुई दादा जी का लंड झटकों के साथ अपनी चूत के अन्दर बाहर कर रही थी. दादा जी भी अपने लंड को अकड़ाए हुए ज़ोर ज़ोर के धक्के मेरी चूत में लगा रहे थे. मेरी मादक सिसकारियां पूरे कमरे में गूँज रही थीं. दादा जी भी मुझे चोदने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे.

ऐसे ही चुदाई करते हुए दादा जी ने मुझे मेरी कमर से पकड़ लिया और मुझे बिस्तर पर पीछे की तरफ लिटा दिया और खुद भी मेरे ऊपर आ गए और मेरी दोनों टाँगों को पकड़ कर अपने लंड को मेरी चूत के अन्दर बाहर करने लगे. मेरे मुँह से सिसकारियां निकलनी और भी तेज हो गयी,,, और मैं ओह,,, दादा जी,,, आअहह दादा जी,,, आआहह,,,,,, म्‍म्म्मममम,,,,, ह्म्‍म्म्ममममम आअहह करते हुए ज़ोर ज़ोर से चीलाने लगी,,, 

दादा जी भी ज़ोर ज़ोर के धक्के मारते हुए आहह कोमल,,,, ओह कोमल,,, रानी,,, ओह तुम्हारी चूत,,,, बहुत मज़ा आ रहा है कोमल,,, ओह,,,, मेरी कोमल,,, बहुत मस्त हो तूमम्म कोमल,,, आअहह करते हुए चिला रहे थे,,,

हमारी आवाज़ें दूसरे कमरे में बैठे विकास तक भी पहुँच चुकी थी,, और इसी लिए अब वो खिड़की के बाहर खड़ा होकर चोरी चोरी हमें देख रहा था,, और मैं दादा जी के नीचे पड़ी उसकी तरफ देख कर मुस्कराते हुए चुदाई करवा रही थी,,, 

दादा जी पूरे जोश में आ चुके थे और वो अपना पूरा लंड मेरी चूत से बाहर निकाल कर झटके के साथ जड़ तक मेरी चूत में पेल देते,, मुझे पता था की अब दादा जी जल्दी ही झड़ने वाले हैं,,, इस लिए मैं भी अपनी चूत के झटकों को उनके झटकों के साथ मिलाकर उनको पूरा मज़ा दे रही थी,,

आख़िरकार दादा जी अपनी चरमसीमा पर पहुँच गये और उन्होंने मेरी टाँगों को और चौड़ा करते हुए एक जोरदार झटका मेरी चूत में मार दिया और अपना लंड जड़ों तक मेरी चूत में घुसा दिया,,, इस जोरदार झटके से में सिर तक हिल गयी,,, दादा जी ने अपने लंड का पूरा वीर्य मेरी चूत के अंदर ही उडेल दिया,,

दादा जी की इस पहलवानी चुदाई से मैं भी बुरी तरह थक चुकी थी,,,, दादा जी का वीर्य मेरी चूत में उनके तेज तेज झटकों से निकल रहा था. वो मुझे इतना कस के पकड़े हुए थे कि मेरा हिलना भी मुश्किल था

आख़िरकार दादा जी का पूरा माल मेरी चूत में निकल गया और दादा जी ने मुझ पर से भी अपनी पकड़ ढीली कर दी. फिर वे मेरी चूत में लंड डाले हुए ही मेरे ऊपर लेट गए,,,,, मगर अभी भी उनके हाथ मेरे बालों और मेरे बदन पर ऐसे घूम रहे थे जैसे अभी उनकी प्यास पूरी नहीं हुई हो और वो दूसरे राउंड के लिए खुद को तैयार कर रहे हों.

मगर उनका लंड धीरे धीरे ढीला होकर मेरी चूत से बाहर फिसल रहा था. मैं भी बुरी तरह से थकी हुई थी. दादा जी भी अपने लंड को तैयार ना देख कर मुझ पर से लुड़क कर बेड पर लेट गए.

अभी हम दोनों को लेटे हुए पाँच मिनट ही हुए थे कि विकास भी कमरे में आ गया और दादा जी से हिचकिचाते हुए बोला- दादा जी.. अब्ब्.. अब आअ.. आप दूसरे क..क्क्क….कमरे में चले जाइए..

दादा जी ने उसकी तरफ देखा और बोले- मैं कहीं नहीं जाऊंगा.. तूने जो करना है मेरे सामने कर!

अपने दादा जी के सामने विकास कुछ भी बोल नहीं पाया और वो अपनी पैंट और अंडरवियर उतार कर मेरे पास आक़र लेट गया. मैं तो पहले से ही नंगी लेटी हुई थी. विकास मेरे ऊपर आकर लेट गया और मुझसे लिपट कर मेरे बदन को मसलने लगा.

कुछ ही देर में विकास का लंड पहले की तरह लोहे की रॉड बन चुका था. मैं भी गर्म हो गई. उसने फिर से मुझे घोड़ी बना लिया और खुद मेरे पीछे आकर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया और ज़ोर ज़ोर से मुझे चोदने लगा. मैं फिर से चिल्ला चिल्ला कर विकास से चुदाई करवाने लगी.


तभी दादा जी भी मेरे मुँह के सामने आकर बैठ गए. उनका लंड फिर से खड़ा हो चुका था. उन्होंने अपनी दोनों टांगें फैला कर अपना लंड मेरे मुँह के सामने कर दिया और मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. मैंने भी अपना मुँह खोला और दादा जी का लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.

अब मेरी दोनों तरफ से चुदाई हो रही थी … मुँह से भी और चूत से भी … इसी तरह दादा पोता ने मिलकर मेरी चूत को करीब 4 घंटे तक चोदा.
फिर मैं शाम को दादा जी और विकास से फिर मिलने का वादा करके घर लौट आई.

तो दोस्तो, कैसी लगी आपको अपनी पंजाबी भाबी की चुदाई की कहानी, मुझे मेल करके ज़रूर बताना

मेरी ईमेल आइडी है.

komalpreetkaur29285@gmail.com